Encyclopedia of Muhammad

नुबूव्‍वत और रिसालत की अवधारणा

पैगम्बरत्व अथवा पैगंबरी शब्द मूल रूप से अरबी शब्द 'नुबूव्‍वा/

नुबूव्‍वत
' का हिन्‍दी में अनुवाद है। 'नुबूव्‍वत' अरबी के मूल अक्षर ‘ن ب آ’ से लिया गया है जिसका अर्थ है लोगों तक सर्वशक्तिमान अल्‍लाह का संदेश (रहस्योद्घाटन/वह्यी) पहुंचाना है। 1 कुछ लोगों ने रिसालत (رسالة) का अनुवाद पैगम्बरत्व نبوتके रूप में किया है, जो गलत है क्योंकि रिसालत शब्द ‘رسل’ से बना है और इसका मतलब अल्लाह तआला की किताब और संदेश पहुंचाना है। यानी, दूसरे शब्दों में, नुबुव्‍वत रिसालत का एक उप-समूह है। हर रसूल को नुबूव्‍वत या पैगम्बरत्व का दर्जा दिया जाता है, लेकिन हर नबी को रिसालत का दर्जा नहीं दिया जाता है। 2 यही कारण है कि जब हम इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करते हैं, तो हमें बड़ी संख्या में नबी/पैगंबर मिलते हैं, लेकिन पवित्र पुस्तकें बहुत कम मिलती हैं, क्योंकि रसूलों की संख्या नबियों की तुलना में बहुत कम है। हालाँकि, रसूल और नबी का हिन्‍दी में अनुवाद पैगम्बर या ईश्‍वरदूत के रूप में किया जाता है, लेकिन इन अरबी शब्दों का हिन्‍दी में कोई विशिष्ट शब्‍द नहीं मिलता है। तथा अरबी भाषा, क्रियाओं और शब्दों की जटिल संरचना Morphology के कारण कई अर्थों का संकेत दे सकती हैं।

नुबूव्‍व्‍त और रिसालत के बीच एक और बड़ा अंतर यह है कि जिस व्यक्ति को नुबूव्‍वत से सम्‍मानित किया जाता है, वह किसी धर्म में परिवर्तन नहीं करता है, बल्कि केवल लोगों तक उसका संदेश पहुंचाता है। जबकि रिसालत से संपन्न व्यक्ति को अल्लाह के मार्गदर्शन के तहत धर्म में कुछ बदलाव करने का अधिकार दिया जाता है। कुछ को पवित्र पुस्तकें और धर्मग्रंथ भी दिए गए हैं, जैसे मूसा को तौरात (तोरा) 3 दिया गया था, दाऊद (डेविड) को ज़बूर दिया गया था, ईसा (यीशु) को इंजील 4 दी गई थी । उन सभी को बाद में लोगों ने भ्रष्ट कर दिया, और उनमें गलत और बेतुकी बातें डाल कर उन्हें पैगंबरों के साथ जोड़ दिया। 5 हज़रत पैगंबर को कुरआन दिया गया था, जो सभी प्रकार की विकृतियों से सुरक्षित और मुक्त है।

नुबूव्‍वत (पैगम्बरत्व): अर्जित या ईश्‍वरीय उपहार

नुबूव्‍वत (पैगम्बरत्व) एक ईश्वरीय उपहार है और इसे अर्जित नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि पैगंबर विशेष रूप से अल्‍लाह के चुने हुए 6 लोग होते हैं और कोई भी व्‍यक्ति हजारों वर्षों तक दिन-रात इबादत करके या किसी भी अन्य माध्यम से इस पद को प्राप्त नहीं कर सकता है। इन चुने हुए व्यक्तियों को उन गुणों से भी पुरस्कृत किया जाता है जो उन्हें अन्य लोगों से अधिक प्रतिष्ठित बनाते हैं। वे आवश्यक गुण और पूर्णताएँ, जो पैगंबरों के पास होनी चाहिए, इस प्रकार हैं:

  1. इस्मत – मासूमियत, निर्दोषता। (यह पहलू केवल पैगम्बरों की विशेषता है और इसे किसी अन्‍य मनुष्‍य के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। हज़रत पैगबंबर के साथियों में भी यह गुण नहीं था और कोई अन्य व्यक्ति या इमाम भी इसका दावा नहीं कर सकता है।)
  2. सिद्क : सत्यता
  3. तबलीग : संदेश पहुंचाना 7
  4. अमानत - विश्वसनीयता 8
  5. वे केवल पुरुष हैं 9 10
  6. उन्हें चमत्कार दिए जाते हैं 11
  7. फतीन : उनके पास बेहतरीन दिमाग होता है।
  8. वे श्रेष्ठ वंश के होते हैं और सबसे अच्छे परिवारों से संबंधित होते हैं। 12
  9. पैगंबर संदेश देते समय सामान्य मानवीय सीमाओं को पार नहीं करते हैं। दूसरे शब्दों में, पैगम्बरत्व और रहस्योद्घाटन (वह्यी) की व्‍यवस्‍था उन्हें कोई देवता नहीं बना देती है। 13
  10. उनका शरीर सुरक्षित होता है और उनकी आत्मा के इस दुनिया से चले जाने के बाद ज़मीन या अन्य जीव इसे नहीं खाते हैं। 14

नुबूव्‍वत की आवश्यकता

हर इन्‍सान को ईश्वर में विश्वास करने की स्वाभाविक और जन्‍मजात आवश्यकता होती है। ऐसा हो सकता है कि एक व्यक्ति एक ईश्वर या अनेक ईश्वर पर विश्‍वास करे या फिर यह कि वह किसी भी ईश्‍वर पर विश्‍वास न करे। चूंकि अल्लाह तआला जानता था कि शैतान लोगों को गुमराह करेगा और राह से भटका देगा, इसलिए उसने इस धरती पर पैगम्बरों और रसूलों को भेजा ताकि इन्‍सान इस दुनिया और उसके बाद मोक्ष प्राप्त कर सके। इतिहास की किताबों में देखा जा सकता है कि पैगंबरों की अनुपस्थिति में मानव जाति ने शैतान की शिक्षाओं को स्वीकार कर लिया और अपनी धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों को भ्रष्ट कर डाला। नतीजतन, चूंकि लोगों की सामाजिक संरचनाएं और कानून धार्मिक मान्यताओं पर निर्भर थे, इसलिए धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों के बिगड़ने के कारण समाज टूटने लगे और व्यवस्था तभी बहाल हुई जब कोई पैगंबर या रसूल को इस पृथ्वी पर भेजा गया। लिहाज़ा, पैगंबर खुदा के वे चुने हुए लोग थे जिन्होंने न केवल धार्मिक व्यवस्था बल्कि समाज की हर व्यवस्था में सुधार किया ताकि मानवजाति शांति से रह सके और परलोक में मोक्ष प्राप्त कर सके ।

ऐसी कई रवायतें और आयतें हैं जो पैग़म्बरी (नुबूव्‍वत) की अनिवार्य आवश्यकता की ओर इशारा करती हैं। पैग़म्बरी के संबंध में पवित्र क़ुरान में कहा गया है कि नुबूव्‍वत अल्लाह सर्वशक्तिमान द्वारा मानव जाति को दिया गया सबसे अच्छा उपहार है। 15 और केवल नुबूव्‍व्‍त की संस्था के माध्यम से ही कि मानव जाति खुद को अंधकार और विचलन से बचा सकती थी। फरिश्‍तें अपने स्वर्गदूतीय गुण (Angelic nature) 16 के कारण मानवता का मार्गदर्शन नहीं कर सकते हैं। इसलिए, पैगंबर, अपने मानवीय स्वभाव के कारण, मानव जाति के प्रति सहानुभूति रखने और उन्हें सर्वोत्तम तरीके से मार्गदर्शन करने की क्षमता रखते हैं।

पैग़म्बरी (नुबव्‍व्‍त) के मार्गदर्शन के बिना इन्‍सान सभ्य नहीं बन सकता और अपने रचयिता से जुड़ नहीं सकता। इस प्रकार, नुबूव्‍वत मानवता की बुनियादी ज़रूरत है और मानवता के मार्गदर्शन और सभ्यता के विकास के लिए रहस्योद्घाटन (वह्यी) सबसे महत्वपूर्ण है। 17 इसके अलावा, केवल नुबूव्‍वत के माध्यम से ही इन्‍सान जीवन की वास्तविकता और उद्देश्य के बारे में जान सकता है, और पुनरुत्थान से पहले, परलोक के दिन और उसके बाद की घटनाओं से अवगत हो सकता है। 18 लिजाज़ा, वह्यी और नुबूव्‍वत के बिना लोग परलोक में विश्वास और दिव्‍यता की अवधारणा के महत्वपूर्ण पहलू को नहीं समझ पाते।

मानव बुद्धि, हालांकि बहुत शक्तिशाली और गहन है, मगर सीमित है और अपने दम पर दैवीय जि़म्‍मेदारियों को खोजने या पहचानने की क्षमता नहीं रखती है, और न ही गलत में से सही के नतीजे या बुराई के चुनने के परिणामों को निर्धारित कर सकती है। नुबूव्‍वत और रिसालत का मार्गदर्शन ही एकमात्र साधन है जिसके माध्यम से मानव जाति सच्चा और दृढ़ विश्वास और ईमान प्राप्त कर सकती है और खुदा की वहदानियत के बारे में भी जान सकती है। 19 इसलिए नुबूव्‍वत या रिसालत ने मानव जाति के लिए नैतिक मूल्यों को आकार देने में बहुत सकारात्मक प्रभाव डाला है और जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान किया है।

कुल पैगंबर और रसूल

आदम इस दुनिया में भेजे जाने वाले पहले इन्‍सान और रसूल थे, और हज़रत मुहम्मद अल्लाह के आखिरी रसूल थे। 20 हज़रत पैगंबर मुहम्मद को पैगंबरी के अंत की मुहर (खातमुल-नबीय्यीन ) के रूप में भी जाना जाता है। 21 और उनके बाद कोई नया नबी नहीं आएगा कुल मिलाकर, अल्लाह तआला ने लगभग 124,000 नबियों और रसूलों को विभिन्न कालखंडों और अलग-अलग भौगोलिक स्थानों पर भेजा।

नुबूव्‍व्‍त एक कानून देने वाली संस्था के रूप में

नुबूव्‍व्‍त (पैग़म्बरी) एक क़ानून देने वाली संस्था है, यानी यह अल्लाह के क़ानून को मानव जाति तक पहुँचाती है। कानून लोगों को सामाजिक रूप से अच्छा बनाने में हमेशा प्रभावी होता है और हर कदम पर जीवन एवं आचार संहिता प्रदान करता है। ये कानून पैगंबर के किसी भी व्यक्तिगत संशोधन के बिना पारित किए जाते हैं। जैसा कि पवित्र कुरआन में कहा गया है:

  وَمَا يَنطِقُ عَنِ الْهَوَىٰ3 إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَىٰ4 22
  और वह नहीं बोलते अपनी इच्छा से। वह तो बस वह़्यी (प्रकाशना) है। जो (उनकी ओर) की जाती है।

चुंकि कानून खुद खुदा की ओर से आता है इसलिए पक्षपात, व्‍यक्तिगत स्वार्थ और अन्‍य दोषों से मु्क्‍त होता है और इस दुनिया और इसके बाद आखिरत दोनों में मानवता के कल्‍याण और बेहतरी के लिए सब से महत्‍वपूर्ण होता है।

फर्जी और जाली पैगंबर

हज़रत पैगबंर मुहम्‍मद अल्‍लाह के आखरी नबी और रसूल थे, इसलिए उनके बाद अब कोई दूसरा नबी या रसूल कतई नहीं आएगा। जैसाकि खुद हज़रत पैगंबर ने फरमाया:

  وأنا خاتم النبيي لا نبي بعدي 23
  मैं (खातमुन-नबीय्यीन) पैगंबरवाद की अंतिम मुहर हूं। मेरे बाद कोई नबी नहीं आएगा।

इसलिए, यदि कोई हज़रत पैगंबर के बाद नबी होने का दावा करता है तो वह व्‍यक्ति निश्चित रूप से झूठा, अधर्मी, निराधार, फर्जी और घटिया दज्‍जाल है। प्रसिद्ध झूठे, जिन्‍होंने अपने लिए नबी होने का दावा किया, उनमें मुसैल्‍मा, तलीहा, सुजाअ, मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी और कई अन्य शामिल हैं।

 


  • 1 Ibrahim Mustafa, et. Al. (N.D) Al-Mu’jam Al-Waseet, Dar Al-Dawa, Alexandria, Egypt, Vol. 2, Pg. 896.
  • 2 Sadruddin Muhammad Al-Hanafi (1418 A.H.), Sharha Al-Aqeeqda Al-Tahavia, Wazarat Al-Shauun Al-Islamia, Saudi Arabia, Pg. 117.
  • 3 Abul Faraj Abdul Rehman bin Ali Al-Jawzi (1422 A.H.), Zaad Al-Maseer fi Ilm Al-Tafseer, Dar Al-Kitab Al-Arabi, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 86.
  • 4 Muhammad Amjad Ali Aazmi (2016), Bahar-e-Shariat, Maktabatul Madinah, Karachi, Pakistan, Vol. 1, Pg. 29.
  • 5 Abu Muhammad Abdul Haq Al-Maghrabi (2001), Al-Hussam Al-Mamdud fi Al-Rad AlalYahood, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 56.
  • 6 Holy Quran, Aale Imran (The Family of Imran) 3: 33
  • 7 Holy Quran, Al-Maidah (The Table Spread) 5: 67
  • 8 Holy Quran, Al-Shua’ra 26: 107
  • 9 Holy Quran, Yousuf (Joseph) 12: 109
  • 10 Shamsuddin Muhammad bin Ahmed Al-Hanbli (1992), Lawame Al-Anwar, Muasasa Al-Khafiqin, Damascus, Syria, Vol. 2, Pg. 265.
  • 11 SaaduddinTaftazani (1437 A.H.), Sharah Al-Aqaid Al-Nasafia, MaktabaLudhyanvia, Karachi, Pakistan, Pg. 147.
  • 12 Shamsuddin Muhammad bin Ahmed Al-Hanbli (1992), Lawame Al-Anwar, Muasasa Al-Khafiqin, Damascus, Syria, Vol. 2, Pg. 266.
  • 13 Holy Quran, Aale Imran (The Family of Imran) 3: 79
  • 14 Muhammad bin Ishaq bin Khuzaima Al-Neshapuri (N.D.), Sahih ibneKhuzaima, Hadith: 1733, Al-Makatab Al-Islami, Beirut, Lebanon, Vol. 3, Pg. 118.
  • 15 Holy Quran, Aale Imran (The Family of Imran) 3: 164
  • 16 Fetullah Gulen (2005), The Messenger of God, Muhammad (ﷺ): An Analysis of the Prophet’s Life, The Light Inc., Somerset, U.K., Pg. 119.
  • 17 Shamsuddin Muhammad bin Ahmed Al-Hanbli (1992), Lawame Al-Anwar, Muasasa Al-Khafiqin, Damascus, Syria, Vol. 2, Pg. 256.
  • 18 Izzuddin Abdul Aziz bin Abdul Salam Al-Sulaimi (2011), SharahAqaid Imam Ghazali, NooriaRizvia Publishing Company, Lahore, Pakistan, Pg. 131.
  • 19 M. Richard Rank & Dimitri Gutas (2008), Early Islamic Theology - The Mutazilities and Al-‘Ashari: Texts and Studies on the Development and History of Kalam, Routledge, London, U.K., Vol. 2. Pg. 146.
  • 20 SaaduddinTaftazani (1437 A.H.), Sharah Al-Aqaid Al-Nasafia, MaktabaLudhyanvia, Karachi, Pakistan, Pg. 148.
  • 21 Holy Quran, Al-Ahzab (The Armies) 33: 40
  • 22 Holy Quran, Al-Najm (The Star) 53: 3-4.
  • 23 Muhammad bin Hanbal Al-Shaibani (2001), Musnad Ahmed bin Hanbal, Hadith: 22395, Muasasa Al-Risala, Beirut, Lebanon, Vol. 37, Pg. 78.