Encyclopedia of Muhammad

दुःख का वर्ष (عام الحزن)

आमुल-हुज्‍़न जिसे दुःख का वर्ष भी कहा जाता है, सन् 619 ई. और हिजरत से पहले का तीसरा वर्ष है। 1 इस वर्ष को दुःख का वर्ष या आमुल-हुज्‍़न कहा जाता है। क्योंकि इसमें हज़रत पैगबंर की पत्नी ख़दीजा और उनके चाचा अबू तालिब का निधन हो गया था। इसके अलावा, उनके चाचा अबू तालिब के निधन के साथ, वह सुरक्षा भी वापस ले ली गई जो उनके द्वारा हज़रत पैगंबर को दी गई थी ।

ख़दीजा और अबू तालिब का निधन एक ही वर्ष में हुआ। 2 उनके दो निकटतम समर्थकों अबू तालिब और फिर खदीजा के निधन के बाद हज़रत मुहम्मद को दुःख के दौर से गुजरना पड़ा। संकटों और आपात स्थितियों में, कुरैश के लोगों के हमलों को रोकने के लिए अबू तालिब हमेशा एक बाहरी समर्थक के रूप में मौजूद रहते थे और ख़दीजा इन सभी कठिनाइयों में हज़रत पैगंबर को सांत्वना देने और प्रोत्साहित करने के लिए एक निजी समर्थक के रूप में हमेशा मौजूद रहीं। उनके दुनिया से चले जाने के बाद, कुरैश ने अपना दुर्व्यवहार बढ़ाना शुरू कर दिया और उन पर इस तरह से अत्याचार करना शुरू कर दिया कि जब तक अबू तालिब जीवित रहे तब तक उन्हें ऐसा करने की कभी हिम्मत न हुई। 3

अबु तालिब का निधन

खदीजा से पहले 4 हज़रत पैगंबर के सामाजिक बहिष्कार 5 के लगभग 28 दिन बाद, शव्वाल महीने के मध्य में अबू तालिब का निधन हो गया। 6 यह संभव है कि घेराबंदी और प्रतिबंधों के तहत रहने की कठोर परिस्थितियों ने अबू तालिब के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला, जो बाद में उनकी बीमारी और मृत्यु 7 का कारण बना।। ऐसा कहा जाता है कि हज़रत ख़दीजा की वफात और अबू तालिब के निधन के बीच की अवधि 35 दिन थी। 8 हालाँकि, दूसरों का कहना है कि यह अवधि केवल 3 दिनों की थी। 9 अबू तालिब बीमार पड़ गए और जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह मौत के करीब हैं। उनकी बीमारी पर, कुरैश के प्रमुख उत्बा और शैबा और अब्दुल शम्स कबीले का अबू सुफियान, मखज़ूम कबीले का अबू-जहल और जुमा का उमय्या आदि ने उनसे मुलाकात की। 10 उस मौके पर उन्होंने उनसे ये बातें कहीं:

  يا أبا طالب إنك منا حيث قد علمت، وقد حضرك ما ترى، وتخوفنا عليك، وقد علمت الذي بيننا وبين ابن أخيك فادعه فخذ لنا منه وخذ له منا ليكف عنا ولنكف عنه، وليدعنا وديننا ولندعه ودينه. فبعث إليه أبو طالب فجاءه فقال: يا بن أخى، هؤلاء أشراف قومك قد اجتمعوا إليك ليعطوك وليأخذوا منك. قال: فقال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه وسلم: "يا عم، كلمة واحدة تعطونھا تملكون بھا العرب وتدين لكم بھا العجم". فقال أبو جھل: نعم وأبيك وعشر كلمات. قال: " تقولون لا إله إلا اللّٰه. وتخلعون ما تعبدون من دونه". فصفقوا بأيديھم. ثم قالوا: يا محمد أتريد أن تجعل الآلھة إلھا واحدا؟ إن أمرك لعجب. قال: ثم قال بعضھم لبعض: إنه واللّٰه ما هذا الرجل بمعطيكم شيئا مما تريدون، فانطلقوا وامضوا على دين آبائكم حتى يحكم اللّٰه بينكم وبينه. ثم تفرقوا. قال: فقال أبو طالب: واللّٰه يا بن أخي ما رأيتك سألتھم شططا. 11
  अबू तालिब, आप जानते हैं कि आप कुरैश में उच्च पद पर हैं, आप अपनी बीमारी और मृत्यु के बारे में भी जानते हैं, आप अपने भतीजे के साथ हमारे संबंधों में तनाव के बारे में भी जानते हैं, आप उसे बुलाइये, हमारा और उसका मामला सुलझाइये, वह हमारे खिलाफ न बोले, हम उसे न छेड़ेंगे, यदि वह हमें और हमारे धर्म को बुरा कहना बंद कर दे, तो हम भी उसे और उसके धर्म को बुरा कहना बंद कर देंगे। तो अबू तालिब ने अल्लाह के रसूल को संदेश भेजा और जब वह आये, तो उन्होंने उनसे कहा, हे भतीजे, कुरैश के ये सरदार "कुछ दो और कुछ लो" के सिद्धांत के तहत एक मामला निपटाने के लिए आपके पास आए हैं, तो ऐसा ही हो। तब अल्लाह के रसूल ने कहा, "कहो कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्‍य (माबूद) नहीं है और उसके अलावा अन्य देवताओं को छोड़ दो।" तो उन्होंने ताली बजाई और कहा, हे मुहम्मद ()! क्या तूने अनेक देवताओं को एक ही ईश्वर बना डाला, तेरी बात बड़ी विचित्र है। फिर वे एक दूसरे से कहने लगे, अल्लाह की कसम, वह तुम्‍हारी बात मानने वाला नहीं, चलो अपने धर्म पर तब तक डटे रहो जब तक ईश्‍वर तुमहारे और उसके बीच अपना आदेश स्थापित नहीं कर देता। यह कहते हुए वह अबू तालिब के पास से चले गए। तब अबू तालिब ने हज़रत पैगंबर से कहा, हे भतीजे, मुझे लगता है कि आपने उन्‍हें कुछ भी अनावश्यक नहीं कहा।"

इस घटना के तुरंत बाद, अबू तालिब का निधन हो गया और उनके साथ वह सुरक्षा भी खत्‍म हो गई जो उनके द्वारा हज़रत पैगंबर को दी गई थी। और कुरैश के लोगों ने हज़रत पैगंबर और उनके अनुयायियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। वे चाहते थे कि अल्लाह के रसूल इस्लाम का प्रचार-प्रसार रोक दें, लेकिन हज़रत पैगंबर ने अपना काम जारी रखा।

खदीजा का निधन

619 ईस्वी में अबू तालिब के निधन के बाद, हज़रत पैगंबर को उनकी पत्नी खदीजा की वफात के रूप में एक और बड़े गम का झटका लगा। उनके निधन के समय उनकी उम्र लगभग 65 वर्ष थी 12 और हज़रत पैगबंर मुहम्मद लगभग 50 वर्ष के थे। वे 25 वर्षों तक गहरे सद्भाव में एक साथ रहे थे, और वह न केवल उनकी पत्नी थी, बल्कि उनकी अंतरंग दोस्त, एवं बुद्धिमान सलाहकार और अली और ज़ैद सहित उनके पूरे परीवार की मां भी थीं। उनकी चारों बेटियाँ दुःख से टूट गयी थीं, 13 लेकिन हज़रत पैगंबर ने उन्हें यह कहकर तसल्‍ली दी कि जिब्रइर्ल (गेब्रियल )एक बार आए थे और उनसे कहा कि ख़दीजा को उन के रब की ओर से सलाम पेश करो और उनसे कहो कि उसने उनके लिए जन्नत में ठिकाना तैयार कर रखा है। 14

उनके निधन की तारीख के बारे में इमाम बुखारी का कहना है कि ख़दीजा का निधन हिजरत से 3 साल पहले हुआ था 15 और बालादुरी के अनुसार यह हिजरत से लगभग 2 साल पहले हुआ था। 16 कुछ लोग कहते हैं कि उनका निधन हिजरत से लगभग 5 वर्ष पहले हुआ था, लेकिन यह गलत है। 17 वह एक सच्‍ची पक्‍की मुसलमान थीं और ताहिरा (शुद्ध पाकीज़ा महिला) 18 के नाम से मशहूर थीं। और हज़रत पैगंबर उनसे इतनी मोहब्‍बत करते थे कि जब तक वह जीवित रहीं, उन्होंने किसी अन्य महिला से शादी नहीं की। उन्हें पवित्र शहर मक्का में जन्नतुल मुअल्‍ला में दफनाया गया, आज भी उनकी मज़ार सुरक्षित है।

 


  • 1 Dr. Ali Muhammad As-Sallaabee (2005), The Noble Life of the Prophet Peace be upon Him (Translated by Faisal Shafeeq), Dar Al-Salam, Riyadh, Saudi Arabia, Vol. 1, Pg. 519.
  • 2 Muhammad ibn Ishaq ibn Yasar Al-Madani (2009), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Ishaq, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 271.
  • 3 Abd Al-Malik ibn Hisham (2009), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Hisham, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 297-298.
  • 4 Abul Fida Ismael ibn Kathir Al-Damishqi (2011), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Kathir, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 172.
  • 5 Muhammad ibn Yusuf Al-Salihi Al-Shami (2013), Subul Al-Huda wal-Rashad fe Seerat Khair Al-Abad, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 434.
  • 6 Muhammad ibn Saad Al-Basri (1968), Tabqat Al-Kubra, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 100.
  • 7 Dr. Ali Muhammad As-Sallaabee (2005), The Noble Life of the Prophet Peace be upon Him (Translated by Faisal Shafeeq), Dar Al-Salam, Riyadh, Saudi Arabia, Vol. 1, Pg. 518.
  • 8 Muhammad ibn Yusuf Al-Salihi Al-Shami (2013), Subul Al-Huda wal-Rashad fe Seerat Khair Al-Abad, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 434.
  • 9 Ahmed bin Hussain bin Ali Al-Qusantini (1984), Waseela tu Al-Islam bi Nabi Alaihi Salato Wassalam, Dar Al-Gharb Al-Islami, Beirut, Lebanon, Pg. 96.
  • 10 Abd Al-Rahman ibn Abdullah Al-Suhaili (2009), Al-Raudh Al-Unf fe-Sharha Al-Seerat Al-Nabawiyah, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 224.
  • 11 Abul Fida Ismael ibn Kathir Al-Damishqi (2011), Al-Seerat Al-Nabawiyah le-ibn Kathir, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Pg. 173.
  • 12 Abul Fida Ismael ibn Kathir Al-Damishqi (1988), Al-Bidayah wa Al-Nihayah, Dar Ihya Al-Turath Al-Arabi, Beirut, Lebanon, Vol. 2, Pg. 359.
  • 13 Martin Lings (1983), Muhammad ﷺ: His life Based on the Earliest Sources, Islamic Texts Society, Lahore, Pakistan, Pg. 96.
  • 14 Abu Abdullah Ahmed ibn Muhammad ibn Hanbal (2001), Musnad Al-Imam Ahmed ibn Hanbal, Hadith: 7156, Dar Al-Hadith, Cairo, Egypt, Vol. 7, Pg. 11.
  • 15 Muhammad ibn Ismail Al-Bukhari (1999), Sahih Al-Bukhari, Hadith: 3896, Dar Al-Salam, Riyadh, Saudi Arabia, Pg. 655.
  • 16 Ahmed bin Yahya bin Dawood Al-Baladuri (1996), Juml Min Ansab Al-Ashraf, Dar Al-Fikar, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 406.
  • 17 Muhammad ibn Yusuf Al-Salihi Al-Shami (2013), Subul Al-Huda wal-Rashad fe Seerat Khair Al-Abad, Dar Al-Kutub Al-Ilmiyah, Beirut, Lebanon, Vol. 1, Pg. 434.
  • 18 Ibid.